किसी ने गिरेबान पकड़कर आतंकवादी नहीं कहा लेकिन फिर भी आंख से आंसू टपकने लगे...किसी ने नाम लेकर गद्दार नहीं बुलाया लेकिन फिर भी गुस्से में खुद को ही कहने लगे...अगर किसी एक सिरफिरे ने ज़हर उगल दिया तो सबको पराया कर दिया...अपने सीने में इतना दर्द और तिरस्कार लेकर क्यों घूम रहे हो भाई...जो हो गया उसमें कब तक जियोगे और जो हुआ नहीं उससे कब तक डरोगे...ऐसी कौनसी सरकार है जिसमें इतनी हिम्मत है कि वो अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों से वंचित रख सके...और ये कौनसी किताब में लिखा है कि हिन्दू सिर्फ हिन्दुओं को और मुसलमान सिर्फ मुसलमानों को ही सही मानें...21वीं सदी है...ठोक-बजाकर तौलो और जो सही लगे उसकी बात मानो...हमारा दुश्मन कोई धर्म और पार्टी नहीं बल्कि गरीबी है...और गरीबी भगाने का एक ही तरीका है पढ़ाई-लिखाई...जितना हम पढ़ेंगे समाज में उतनी ही हमारी इज्ज़त और ताकत बढ़ेगी...इसलिए Self Pity छोड़ो और आगे बढ़ने की कोशिश करो...क्योंकि ये ज़िंदगी नफ़रत के लिए बहुत छोटी है...
जब ज़िंदगी उलटी दिशा में बहे..तो अड़ जाना, दोगुना जोश जगाना..जब सब कुछ बिगड़ता दिखाई दे तो अपने आप पर और अपने ईश्वर (Divine Energy) पर भरोसा, और बढ़ाना..क्योंकि जिस वक्त हम हिम्मत हारते हैं ना..उसी समय हमें सबसे ज्यादा हिम्मत रखने की आवश्यकता (Need) होती है.. आसान वक्त तो अपने आप ही कट जाता है..लेकिन मुश्किल समय में हमें ज़्यादा उम्मीद, ज़्यादा लगन और ज़्यादा विश्वास की ज़रूरत पड़ती है...यही वो समय है जब हमें ज़िद करनी है..अपना शौर्य, अपना दम-खम साबित करना है..अपने अंदर इतना विश्वास (Faith) जगाना है कि हमारे रोम-रोम को इस बात का यकीन हो जाए कि हमारे साथ जो भी होगा वो अच्छा ही होगा..ऐसा करने से ना सिर्फ हमारा मन शांत रहेगा बल्कि भविष्य को लेकर सारे डर भी खत्म हो जाएंगे..फिर हम जिस तरफ भी कोशिश करेंगे उसका नतीजा अच्छा ही होगा.. जब हम आज के हालात से निपटना सीख लेंगे, उसमें खरे उतरेंगे..तभी तो एक बेहतर दुनिया के दरवाजे खुलेंगे..
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