ज़िंदगी जीने के दो ही तरीके हैं..पहला..ऊपरवाले पर सबकुछ छोड़ दो और
निश्चिंत हो जाओ...किस्मत जो भी दे, उसे खुशी-खुशी स्वीकारो..अच्छा मिले तो
बढ़िया..नहीं मिले तो कड़वा घूंट समझ कर पी जाओ...दूसरा..जीतोड़ मेहनत करो
और अपना भाग्य खुद बनाओ...दोनों में से कोई भी तरीका अच्छा या बुरा नहीं
है...ये हमारे ऊपर है कि हम कौनसा तरीका चुनते हैं...लेकिन इतना तो तय है
कि दोनों ही तरीकों में चिंता, परेशानी, गम की कोई जगह नहीं है...अगर हम
खुदा के भरोसे हैं तो वो बिना मांगे हम पर अपनी नेमत बरसाएंगे...और सारे
दुख हर लेंगे...और अगर आप खुद ही ज़िंदगी से जूझने निकल पड़े हैं तब भी
घबराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आत्मविश्वास के सामने गमों की क्या
औकात...तो फिर शिकायत किस बात की...एक बेहतर कल की उम्मीद में हमेशा
हंसते-मुस्कुराते रहो...और ज़िंदगी को जी भर के जियो... Anshupriya Prasad
अपने आप से बात करते समय, बेहद सावधानी बरतें..क्योंकि हमारा आगे आने वाला वक्त काफी हद तक, इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं..या फिर खुद से कैसी बातें करते हैं..हमारे साथ कोई भी बात, होती तो एक बार है, लेकिन हम लगातार उसी के बारे में सोचते रहते हैं..और मन ही मन, उन्ही पलों को, हर समय जीते रहते हैं जिनसे हमें चोट पहुंचती है..बार-बार ऐसी बातों को याद करने से, हमारा दिल इतना छलनी हो जाता है कि सारा आत्मविश्वास, रिस-रिस कर बह जाता है..फिर हमें कोई भी काम करने में डर लगता है..भरोसा ही नहीं होता कि हम कुछ, कर भी पाएंगे या नहीं..तरह-तरह की आशंकाएं सताने लगती हैं..इन सबका नतीजा ये होता है कि अगर कोई अनहोनी, नहीं भी होने वाली होती है, तो वो होने लगती है..गलत बातें सोच-सोच कर, हम अपने ही दुर्भाग्य पर मोहर लगा देते हैं..इसलिए वही सोचो, जो आप भविष्य में होते हुए देखना चाहते हो..वैसे भी न्यौता, सुख को दिया जाता है..दुख को नहीं..तो फिर तैयारी भी खुशियों की ही करनी चाहिए..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!