ज़िंदगी जीने के दो ही तरीके हैं..पहला..ऊपरवाले पर सबकुछ छोड़ दो और
निश्चिंत हो जाओ...किस्मत जो भी दे, उसे खुशी-खुशी स्वीकारो..अच्छा मिले तो
बढ़िया..नहीं मिले तो कड़वा घूंट समझ कर पी जाओ...दूसरा..जीतोड़ मेहनत करो
और अपना भाग्य खुद बनाओ...दोनों में से कोई भी तरीका अच्छा या बुरा नहीं
है...ये हमारे ऊपर है कि हम कौनसा तरीका चुनते हैं...लेकिन इतना तो तय है
कि दोनों ही तरीकों में चिंता, परेशानी, गम की कोई जगह नहीं है...अगर हम
खुदा के भरोसे हैं तो वो बिना मांगे हम पर अपनी नेमत बरसाएंगे...और सारे
दुख हर लेंगे...और अगर आप खुद ही ज़िंदगी से जूझने निकल पड़े हैं तब भी
घबराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आत्मविश्वास के सामने गमों की क्या
औकात...तो फिर शिकायत किस बात की...एक बेहतर कल की उम्मीद में हमेशा
हंसते-मुस्कुराते रहो...और ज़िंदगी को जी भर के जियो... Anshupriya Prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!