क्या
हमारी ज़िंदगी में सब कुछ पहले से तय है..हम कुछ नहीं कर सकते...अगर ऐसा
होता तो हमें अपना रास्ता चुनने की आज़ादी नहीं होती...किसी भी हालात में
हम कैसे रियेक्ट करें, ये हमारे ऊपर है...हम किसी भी चीज को इतना खराब कर
सकते हैं कि कोई उम्मीद ही ना रहे और इतना अच्छा भी कर सकते हैं कि मंज़िल
साफ-साफ दिखाई देने लगे...हर इंसान में इतनी ताकत है कि वो अपना भाग्य खुद
बना सके...वैसे भी इस बात की क्या गारंटी
है कि किस्मत खराब भी होती है...कोई आकाशवाणी तो हुई नहीं आज तक...दो-चार
बार हार का मुंह क्या देख लिया खुद से, खुदाई से खफ़ा हो गए...जब हर समय
बुझे-बुझे रहोगे...कोशिश ही नहीं करोगे...तो आगे कैसे बढ़़ोगे...ज़मीन में
ऐसे उगो कि तूफान भी हिला नहीं सके...क्योंकि असफलता मिलती ही इसलिए है कि
उन चीज़ों को पाने का मज़ा बढ़ जाए जो उम्मीद से भी ज्यादा खूबसूरत
हैं...इसलिए रुकना नहीं...अपने दमखम से वो हासिल करो जिस पर हमारा नाम उसी
दिन लिख दिया गया था जिस दिन हमने उन्हें पाने का ख्वाब देखा था... +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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