कभी
राम के चरित्र पर उंगली..तो कभी कान्हा के..कभी शिवलिंग पर सवाल तो कभी
माता की शक्ति पर..दूसरों की छोड़िए यहां तो लोग अपने ही धर्म का मज़ाक
बनाने लगे हैं..हम ये भूल गए हैं कि हमारे भगवान मानव रूप में ज़रूर हैं
लेकिन वो मानव नहीं हैं..भगवान की मानवीय साज-सज्जा, उनके काम और यहां तक
कि उनके रंगों के पीछे भी अलग-अलग और गहरे मतलब छुपे हुए हैं..वैसे भी
सिर्फ मंदिर जाना और पूजा करना ही धर्म नहीं है..हिन्दू
धर्म एक जीवन शैली है..इसलिए इसका दूसरे धर्मों से कोई बैर नहीं..हम सबके
साथ मिल जुलकर भी अपने धर्म का पालन कर सकते हैं..ज़रूरी नहीं है कि जो
चीज़ें हम बचपन से देखते आए हैं वही सही हों..अगर कुछ लोगों ने अपने फायदे
के लिए हिन्दू धर्म का स्वरूप बिगाड़ दिया है तो ये ज़िम्मेदारी हमारी है
कि हम अपने धर्म के असली रूप को पहचानें और उसे सही मायने में अपनाएं.. +anshupriya prasad
अपने आप से बात करते समय, बेहद सावधानी बरतें..क्योंकि हमारा आगे आने वाला वक्त काफी हद तक, इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं..या फिर खुद से कैसी बातें करते हैं..हमारे साथ कोई भी बात, होती तो एक बार है, लेकिन हम लगातार उसी के बारे में सोचते रहते हैं..और मन ही मन, उन्ही पलों को, हर समय जीते रहते हैं जिनसे हमें चोट पहुंचती है..बार-बार ऐसी बातों को याद करने से, हमारा दिल इतना छलनी हो जाता है कि सारा आत्मविश्वास, रिस-रिस कर बह जाता है..फिर हमें कोई भी काम करने में डर लगता है..भरोसा ही नहीं होता कि हम कुछ, कर भी पाएंगे या नहीं..तरह-तरह की आशंकाएं सताने लगती हैं..इन सबका नतीजा ये होता है कि अगर कोई अनहोनी, नहीं भी होने वाली होती है, तो वो होने लगती है..गलत बातें सोच-सोच कर, हम अपने ही दुर्भाग्य पर मोहर लगा देते हैं..इसलिए वही सोचो, जो आप भविष्य में होते हुए देखना चाहते हो..वैसे भी न्यौता, सुख को दिया जाता है..दुख को नहीं..तो फिर तैयारी भी खुशियों की ही करनी चाहिए..
Comments
Post a Comment