कभी
राम के चरित्र पर उंगली..तो कभी कान्हा के..कभी शिवलिंग पर सवाल तो कभी
माता की शक्ति पर..दूसरों की छोड़िए यहां तो लोग अपने ही धर्म का मज़ाक
बनाने लगे हैं..हम ये भूल गए हैं कि हमारे भगवान मानव रूप में ज़रूर हैं
लेकिन वो मानव नहीं हैं..भगवान की मानवीय साज-सज्जा, उनके काम और यहां तक
कि उनके रंगों के पीछे भी अलग-अलग और गहरे मतलब छुपे हुए हैं..वैसे भी
सिर्फ मंदिर जाना और पूजा करना ही धर्म नहीं है..हिन्दू
धर्म एक जीवन शैली है..इसलिए इसका दूसरे धर्मों से कोई बैर नहीं..हम सबके
साथ मिल जुलकर भी अपने धर्म का पालन कर सकते हैं..ज़रूरी नहीं है कि जो
चीज़ें हम बचपन से देखते आए हैं वही सही हों..अगर कुछ लोगों ने अपने फायदे
के लिए हिन्दू धर्म का स्वरूप बिगाड़ दिया है तो ये ज़िम्मेदारी हमारी है
कि हम अपने धर्म के असली रूप को पहचानें और उसे सही मायने में अपनाएं.. +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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