ज़िंदगी की दौड़ में,
तज़ुर्बा कच्चा ही रह गया..
हम सीख न पाए 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं...
ज़िंदगी तुम हमें ढूंढो...
हम तुम्हे ढूंढते हैं ...!!!
मनीष जैन की कलम से
तज़ुर्बा कच्चा ही रह गया..
हम सीख न पाए 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं...
ज़िंदगी तुम हमें ढूंढो...
हम तुम्हे ढूंढते हैं ...!!!
मनीष जैन की कलम से
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