तुम जियो नफ़रत में अपनी, मुझे मेरे दिल की शांति मुबारक!..तुम जिन लोगों
को देखकर रोज़ अपना खून जलाते हो, मैं उन्हीं लोगों में थोड़ी सी अच्छाई
ढूंढ लूंगी..तुम धर्म की आड़ में इंसानियत का गला का घोंटते रहो, हम
इंसानियत को ही अपना धर्म मानेंगे..जियो तो ऐसे जियो कि खुदा को भी अपने
बंदों पर नाज़ हो..नफ़रत से तो घर के चिराग सिर्फ बुझे हैं, कभी जले
नहीं..अंधेरों से परे पाक चांद की रोशनी में आप सभी को ईद मुबारक.. +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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