जिस
तरह से प्यार से रिश्ते बनते हैं उसी तरह नफ़रत से भी अटूट रिश्ते बनते
हैं..नफ़रत हमारी रूह पर फेविकॉल के जोड़ की तरह चिपक जाती है..और फिर हम
जन्म-जन्मांतर तक उन लोगों को ढोते रहते हैं जिन्हें हम एक पल भी बर्दाश्त
नहीं कर सकते..कहते हैं, जितनी ज़्यादा नफ़रत, उतना ही गहरा रिश्ता हमारे
हाथ की लकीरों में लिख दिया जाता है..इसलिए भलाई इसी में है कि उन लोगों से
रिश्ते सुधार लिए जाएं..जो हमारे करीबी तो हैं लेकिन लगातार चोट पहुंचाते
रहते हैं..और अगर ये मुश्किल लगे तो उन्हें माफ़ कर दो..ऐसा करने से भले ही
अगला जन्म सुधरे या ना सुधरे..लेकिन ये जन्म ज़रूर सुधर जाएगा.. +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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