प्रिय पापा,
मुझे तुम रोज़ याद आते हो, मैं तुम्हें रोज़ याद करता हूँ..
तुम्हीं ने कहा था यहाँ से जो जाता है, वो वहाँ चला जाता है तारों में ,
एक तारा बन जाता है, अब ये बात मैं जानता हूँ कि ग़लत है पर मानता नहीं कि ग़लत है,
एक तारा बन जाता है, अब ये बात मैं जानता हूँ कि ग़लत है पर मानता नहीं कि ग़लत है,
मुझे आसमां के हर तारे से बात करना अच्छा लगता है... क्यूंकि उनमें छुपा मेरा बचपन लुका छुपी खेलता है,
अपने आप को कभी छुपाता /कभी ढूंढता है/ और गाहे ब गाहे पा भी लेता है/ उस वक़्त जब किसी तारे में तुम दिखाई दे जाते हो/
तुम्हें इस तरह पकड़ लेना बहुत अच्छा लगता है/ तुम से लिपट जाना अच्छा लगता है/
क्यूंकि ये आगोशी रूहानी होती है/ जिस्मानी नहीं कि तुम बस यूँ ही चले जाओगे और/
मैं वेदों की , शास्त्रों की ऋचाएं सुनता बिलखता तुम्हें पञ्च तत्व में विलीन कर आऊँगा /
यूँ अचानक रातों रात राजकुमार से राजा बन जाऊंगा/ काँटों वाले ताज से मस्तक सजाऊँगा/ और बच्चे से बड़ा बन जाऊंगा/
हर बार तुम मेरा बचपन नहीं छीन पाओगे /
मैं तुम्हें याद करता रहूँगा और तुम ये वादा करों कि तुम मुझे याद आते रहोगे /
क्यूंकि मुझे ये झुठलाना अच्छा लगता है, जो किसी ने उस रोज़ कहा था,
" वक़्त हर ग़म भुला देता है धीरे धीरे सब भूल जाओगे"
ऐसा नहीं होता ऐसा नहीं हो पाया/ तुम हो यहीं मुझ में बस यूँ ही मुझमें /
मुझे लगा कि आज जब सभी कुछ न कुछ कह रहे हैं तो मुझे भी कहना ही होगा नहीं तो तुम जीत जाओगे फिर से छुप जाओगे और मैं तुम्हें खो दूंगा/
तुम मरे ही नहीं जिंदा हो जिंदा हो मुझ में हर वक़्त....
मैं तुम्हें यूँ मरने नहीं दूंगा तुम्हें रहना होगा मेरे साथ मेरा बचपन अपनी गोद में उठाये ले चलना होगा मुझे भी तारों के पार.....
मुझे आज भी बहुत डर लगता है कि जब कोई पूछता है कि तुम्हारे पापा ? और मुझे ये कहना पड़ता है कि तुम नहीं हो और मैं अकेला हूँ ....
जबकि तुम मरे ही नहीं जिंदा हो जिंदा हो मुझ में हर वक़्त....
नहीं बोला जाता है ये झूठ मुझसे कि, तुम मर चुके हो,बहुत डर लगता है इस झूठ से.....
बोलो ले चलोगे न मुझे अपनी गोद में बच्चे सा उठाये अपने साथ तारों के पार ?
तुम्हारा 'सेमू'
Semant Harish की यादों के झरोखों से...उन्ही की कलम से..
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