धर्म कोई आडंबर नहीं बल्कि जीवन शैली (lifestyle) है..मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा जाए बिना भी हम धार्मिक हो सकते हैं..क्योंकि जब तक हम ईश्वर (Divine) के साथ अपना पर्सनल कनेक्शन जोड़ना नहीं सीख जाते..तब तक धर्म ही हमारी उंगली पकड़ कर हमें चलना सिखाता है..इसलिए किसी से भी उसका मज़हब कभी मत छीनो.. +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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