दिमाग का भी किस्मत कनेक्शन होता है..क्योंकि बचपन से ही हमारे दिमाग में
कई बातें अपने आप दर्ज (feed) होती रहती हैं..जैसे किस्मत का अच्छा या बुरा
होना, भाग्य से ज्यादा किसी को नहीं मिलना..हम इन बातों पर इसलिए विश्वास
करने लगते हैं क्योंकि हमारे आसपास रहने वाले ज्यादातर लोग ऐसी ही बातों पर
यकीन रखते हैं..ये बातें जाने-अनजाने हमारे दिमाग में इतनी गहरी बैठ जाती
हैं कि जरा सी अड़चन आते ही हमें लगता है कि हमारा तो समय ठीक नहीं है
इसलिए कोई काम नहीं बन रहा..और अगर थोड़ी-बहुत मेहनत कर
ली और फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी तो डंके की चोट पर ये मान लिया जाता है
कि हमारी तो किस्मत ही खराब है, हमें तो कोई भी चीज कभी मिल ही नहीं
सकती..अब जब मन की गहराइयों में इतनी नकारात्मक (negative) बातें भरी
रहेंगी तो हौसला कहां से आएगा..कोई भी काम करते-करते अगर खुद का मन ही
निराशा से भर उठे तो यकीन मानिए वो काम कभी पूरा नहीं होगा..इसलिए हथियार
डालने का कोई फायदा नहीं..संघर्ष तो वैसे भी करना ही पड़ रहा है..तो क्यों
ना हम इसे अपनी खुशी से चुनें..कम से कम सफल होने की उम्मीद तो होगी.. +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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