हम सपने देखने से डरते हैं..उनके बारे में बात करने में संकोच करते हैं..घबराते हैं कि अगर किसी को पता चल गया तो हमारा मज़ाक उड़ेगा..लोग कहेंगे कि आता-जाता तो कुछ नहीं है लेकिन ख्वाब तो राजा-रानियों वाले हैं..सच तो ये है कि हम दूसरों से नहीं बल्कि अपने आप से शरमाते हैं..खुद से कमिटमेंट करने में डरते हैं..अब लोगों का क्या है..उन्हे तो कुछ ना कुछ कहना ही है..सपने देखोगे, तब भी बोलेंगे और नहीं देखोगे, तब भी ताने मारेंगे कि ये तो किसी लायक नहीं है..इसलिए सपने ज़रूर देखो..अपनी ताकत से ज्यादा और खूब सारे देखो..फिर अपने आपको उनमें झोंक दो..सलमान ख़ान का ये डायलॉग तो सुना ही होगा कि-"एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी..उसके बाद तो मैं खुद की भी नहीं सुनता"..ऐसी ही कमिटमेंट खुद से करो..अपनी तरक्की के लिए..उन्नति के लिए..अपने और अपनों के सपने साकार करने के लिए..और फिर जब तक मंज़िल पर नहीं पहुंचो तब तक खुद की भी नहीं सुनो..
अपने आप से बात करते समय, बेहद सावधानी बरतें..क्योंकि हमारा आगे आने वाला वक्त काफी हद तक, इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं..या फिर खुद से कैसी बातें करते हैं..हमारे साथ कोई भी बात, होती तो एक बार है, लेकिन हम लगातार उसी के बारे में सोचते रहते हैं..और मन ही मन, उन्ही पलों को, हर समय जीते रहते हैं जिनसे हमें चोट पहुंचती है..बार-बार ऐसी बातों को याद करने से, हमारा दिल इतना छलनी हो जाता है कि सारा आत्मविश्वास, रिस-रिस कर बह जाता है..फिर हमें कोई भी काम करने में डर लगता है..भरोसा ही नहीं होता कि हम कुछ, कर भी पाएंगे या नहीं..तरह-तरह की आशंकाएं सताने लगती हैं..इन सबका नतीजा ये होता है कि अगर कोई अनहोनी, नहीं भी होने वाली होती है, तो वो होने लगती है..गलत बातें सोच-सोच कर, हम अपने ही दुर्भाग्य पर मोहर लगा देते हैं..इसलिए वही सोचो, जो आप भविष्य में होते हुए देखना चाहते हो..वैसे भी न्यौता, सुख को दिया जाता है..दुख को नहीं..तो फिर तैयारी भी खुशियों की ही करनी चाहिए..
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