ये बैचेनी..ये कसक..उन सपनों की है जो अधूरे छूट गए, या फिर कभी देखे ही नहीं गए..जब हम बहुत कुछ कर सकते हैं, लेकिन करते नहीं, तो दिल बैचेन हो उठता है..कहीं मन नहीं लगता..समझ में नहीं आता कि क्या करें..फिर भले ही हम इधर-उधर की चीजों में, लाख टाइम पास करने की कोशिश करें..लेकिन ये दिल, ज्यादा देर तक बहलेगा नहीं..टीवी, फेसबुक, व्हाट्सएप, नशा, नींद, गॉसिप, पार्टी, किसी से भी खालीपन नहीं भरेगा..क्योंकि हमारे अंदर कुछ है, जो लगातार संपूर्ण होना (Perfection) चाहता है..यानी कि हर काम पहले से बेहतर करना चाहता है..जिसे अपनी सीमाओं से परे, एक नई पहचान की तलाश है..और जो खिल कर, महकना चाहता है..लेकिन हम उसे, उसके हिस्से की धूप नहीं देते..उसे मन के अंधेरों में बंद करके भूल गए हैं..इसलिए इतनी पीड़ा, इतनी बैचेनी होती है..अगर इससे निकलना है तो अपने गोल (Goal) सेट करो..रोज़मर्रा के काम से हटकर, अपना लक्ष्य बनाओ..कुछ नया सीखो..किसी मुश्किल काम को साधो..फिर देखो, कितना मज़ा आता है..सारी खलिश, सारी बैचेनी एकदम खत्म हो जाएगी..एक ऐसी पाकीज़ा खुशी मिलेगी..जिसे कोई, आपसे छीन नहीं पाएगा..तो फिर, आधे-अधूरे क्यों
Let's bring out the Hero in you..