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Showing posts from May, 2017

मां होती भी है या नहीं..

गर्भ (womb) में पल रहे किसी भी बच्चे को नहीं पता होता कि मां क्या होती है..वो कौन है..कैसी है..है भी या नहीं..मां के अंदर और मां का ही हिस्सा होने के बावजूद वो मां के अस्तित्व से अनजान रहता है..जन्म के बाद जब बच्चे को मां की गोद मिलती है तब उसे ज़िंदगी की सबसे पहली मिठास का अहसास होता है..मां की ही तरह ईश्वर (Divine) भी हर पल, हर जगह हमारे साथ हैं..हम उन्ही के अंदर और उन्ही का हिस्सा हैं..लेकिन फिर भी उनके होने का सबूत मांगते हैं..और मंदिरों, मस्ज़िदों में उन्हें ढूंढते रहते हैं..लेकिन जो हर जगह मौजूद हैं..वो सिर्फ गीता, कुरान, बाइबिल में तो मिलेगें नहीं..उनकी मौजूदगी को तो बस महसूस किया जा सकता है.. +anshupriya prasad  

Tomorrow will never disappoint..

बहुत बुरा लगता है जब सारी प्लानिंग फेल हो जाती है..और वैसा नहीं होता जैसा हम चाहते हैं..लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है वैसे-वैसे हम ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि अच्छा ही हुआ कि हम जो चाहते थे वो नहीं हुआ..क्योंकि अभी जो हो रहा है..वो तो हम कभी सोच भी नहीं सकते थे..इसलिए हर छोटी-बड़ी चीज़ जो हमें नहीं मिल पाती है..उसे दिल से लगाकर मत बैठो..कई बार हम उतना बेहतर नहीं सोच पाते हैं जितना भविष्य के खजाने में हमारे लिए छुपा हुआ है..सच तो ये है कि अगर आज ये नहीं होगा..तो कल उससे भी बढ़िया होगा.. +anshupriya prasad  

खुशियों का हिसाब-किताब..

चलो, आज से खुशियों का हिसाब-किताब रखते हैं..गमों को जाने देते हैं और सिर्फ खुशियों की गिनती करते हैं..एक डायरी बनाते हैं जिसमें हर दिन के ठहाकों, मुस्कुराहटों और खिलखिलाहटों का जिक्र हो..शुरुआत में तो ऐसे पल ढूंढे नहीं मिलेंगे..ऐसा लगेगा कि हंसना तो दूर, हम तो दिल से मुस्कुराना तक भूल गए हैं..लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, डायरी के पन्ने कम पड़ने लगेंगे..और फिर सिर्फ डायरी ही नहीं, ज़िंदगी भी खुशियों से भरने लगेगी.. +anshupriya prasad