उस रात सूरज उगा था तब उजाले से भर गईं थीं मेरी आँखें और मेरा कमरा गुनगुनी खुशबु से महकने लगा था पीड़ा की गठरी में से निकल सुकून की तितलियाँ उड़ने लगीं थीं मेरे चारो ओर मेरी सोच और यथार्थ में , परिवर्तन न था तुमको देखा तो लगा जानता हूँ हमेशा से ईश्वर की इस दुआ से गोद लिया तो तुम्हारे गुदगुदे पाँव मेरी हथेलियों को पवित्र कर गए जीवन का सन्देश देतीं उसकी अधमुंदी आँखों की चमक मेरे जीवन की मुंडेर पर जुगनुओं सी सज गईं उन नन्हे पैरों को हौले से सहलाया उसको हुई थोड़ी गुदगुदी और मेरी हथेलियाँ पवित्र हो गईं !!! रब राखा.. पंकज शर्मा की कलम से...
Let's bring out the Hero in you..