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Showing posts from February, 2016

पिता के जज़्बातों की दिल छू लेने वाली दास्तां..

उस रात सूरज उगा था तब उजाले से भर गईं थीं मेरी आँखें और मेरा कमरा गुनगुनी खुशबु से महकने लगा था पीड़ा की गठरी में से निकल सुकून की तितलियाँ उड़ने लगीं थीं मेरे चारो ओर मेरी सोच और यथार्थ में , परिवर्तन न था तुमको देखा तो लगा जानता हूँ हमेशा से ईश्वर की इस दुआ से गोद लिया तो तुम्हारे गुदगुदे पाँव मेरी हथेलियों को पवित्र कर गए जीवन का सन्देश देतीं उसकी अधमुंदी आँखों की चमक मेरे जीवन की मुंडेर पर जुगनुओं सी सज गईं उन नन्हे पैरों को हौले से सहलाया उसको हुई थोड़ी गुदगुदी और मेरी हथेलियाँ पवित्र हो गईं !!! रब राखा.. पंकज शर्मा की कलम से...

गबरू जवान की शादी..

सिक्स पैक एब्स वाला दूल्हा देखा है कहीं...डोले-शोले पर खूब चढ़ा हल्दी का रंग..

जन्मदिन पर जब बेटे को सताए मां की याद...

कहाँ तुम चली गई माँ..जन्मदिन पर आशीर्वाद और दुआ खूब मिल रही है...दोस्त,मित्र,बड़े भाई,गुरु सब विश कर रहे हैं...लेकिन तुम्हारे आँचल के खूँटे में बंधे वो पैसे नहीं जिसे चुपके से खोलकर मैं भाग जाता था...तुम्हारी ममता की गोद और तुमसे गले मिलकर तुमसे जिद करने का मन करता है...माँ....कहाँ हो माँ...आशु..। आशुतोष कुमार पांडे की कलम से...

Don't become a Punching Bag

दूसरों से मान-सम्मान पाने के लिए खुद को प्यार और सम्मान देना ज़रूरी है..क्योंकि हम अपने बारे में जो भी सोचते हैं...दूसरे भी हमें वैसा ही मानना शुरू कर देते हैं...इसलिए अपने आपको किसी से कम मत समझो...दिल में इतना आत्मविश्वास लेकर घर से निकलो कि सूरज भी फीका पड़ जाए...किसी को भी अपनी ज़िंदगी में इतना मत घुसने दो कि वो आपको अपना पंचिंग बैग बना ले...अपनी कीमत को पहचानो और खुद को सबसे स्पेशल मानो...क्योंकि दूसरों से इज्ज़त तभी मिलेगी जब हम खुद अपनी इज्ज़त करना सीखेंगे... Anshupriya Prasad

जब निकी की बदली दुनिया

                                                                 मौसी भी मां जैसी..

करो वो जो दिल कहे..

                                   जब बाल हों छोटे और मन हो चोटी बनाने का..

जब भाई से मिली बहना..

                                 फूलों का तारों का सबका कहना है..एक हज़ारों में मेरी बहना है...

ज़रा सी ज़िंदगी...

                                 अजीब सी कश्मकश है तू ज़िंदगी.... पता ही नहीं तू जीना सिखा रही है या जीते जी मेरा मज़ाक बना रही है.... कभी तू मीठा गाजर का हलवा बन कर जीवन मीठा कर जाती है.. और फिर तू केले का छिलका बन कर, बीच सड़क में गिरा जाती है... कभी तू 3G की स्पीड सी, स्मूथ दौड़ जाती है, और फिर अचानक स्लो कनेक्टिविटी सी तू हैंग कर जाती है... कभी तू एयर बलून पहना कर मुझे बहुत ऊपर ले जाती है, और फिर तू बंजी जंपिंग कर सीधे गड्ढे में गिराती है, कभी तो तू फ्लिपकार्ट की सर्विस बन दरवाजे पे खुशियां पहुंचा जाती है.. और फिर तू CP के पालिका बाज़ार में, नकली सामान दिलवा कर ठग सा जाती है... कभी तू कॉमेडी नाइट का कपिल बन कर गुदगुदाती है... और फिर अचानक तू एंग्री अमिताभ बन कर सीरियस मोड़ में पहुंचा जाती है.... कभी तू मोदी का जोशीला भाषण सी जोश भर जाती है, और फिर तू मनमोहन की ख़ामोशी सा चुप कर जाती है... अजीब सी कश्मकश है तू ज़िंदगी.... पता ही नहीं तू जीना सिखा रही है या जीते जी मेरा मज़ाक बना रही है....  zindaginama#  ज़रीन की कलम से...