अजीब सी कश्मकश है तू ज़िंदगी....
पता ही नहीं तू जीना सिखा रही है या जीते जी मेरा मज़ाक बना रही है....
कभी तू मीठा गाजर का हलवा बन कर जीवन मीठा कर जाती है..
और फिर तू केले का छिलका बन कर, बीच सड़क में गिरा जाती है...
कभी तू 3G की स्पीड सी, स्मूथ दौड़ जाती है,
और फिर अचानक स्लो कनेक्टिविटी सी तू हैंग कर जाती है...
कभी तू एयर बलून पहना कर मुझे बहुत ऊपर ले जाती है,
और फिर तू बंजी जंपिंग कर सीधे गड्ढे में गिराती है,
कभी तो तू फ्लिपकार्ट की सर्विस बन दरवाजे पे खुशियां पहुंचा जाती है..
और फिर तू CP के पालिका बाज़ार में, नकली सामान दिलवा कर ठग सा जाती है...
कभी तू कॉमेडी नाइट का कपिल बन कर गुदगुदाती है...
और फिर अचानक तू एंग्री अमिताभ बन कर सीरियस मोड़ में पहुंचा जाती है....
कभी तू मोदी का जोशीला भाषण सी जोश भर जाती है,
और फिर तू मनमोहन की ख़ामोशी सा चुप कर जाती है...
अजीब सी कश्मकश है तू ज़िंदगी....
पता ही नहीं तू जीना सिखा रही है या जीते जी मेरा मज़ाक बना रही है....
zindaginama# ज़रीन की कलम से...
और फिर तू केले का छिलका बन कर, बीच सड़क में गिरा जाती है...
कभी तू 3G की स्पीड सी, स्मूथ दौड़ जाती है,
और फिर अचानक स्लो कनेक्टिविटी सी तू हैंग कर जाती है...
कभी तू एयर बलून पहना कर मुझे बहुत ऊपर ले जाती है,
और फिर तू बंजी जंपिंग कर सीधे गड्ढे में गिराती है,
कभी तो तू फ्लिपकार्ट की सर्विस बन दरवाजे पे खुशियां पहुंचा जाती है..
और फिर तू CP के पालिका बाज़ार में, नकली सामान दिलवा कर ठग सा जाती है...
कभी तू कॉमेडी नाइट का कपिल बन कर गुदगुदाती है...
और फिर अचानक तू एंग्री अमिताभ बन कर सीरियस मोड़ में पहुंचा जाती है....
कभी तू मोदी का जोशीला भाषण सी जोश भर जाती है,
और फिर तू मनमोहन की ख़ामोशी सा चुप कर जाती है...
अजीब सी कश्मकश है तू ज़िंदगी....
पता ही नहीं तू जीना सिखा रही है या जीते जी मेरा मज़ाक बना रही है....
zindaginama# ज़रीन की कलम से...
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