मन करता है, कई बार
एक घरौंदा बनाया जाए...
जिसमें तुम्हारे जज़्बात की मिट्टी हो और मेरे अहसास का गारा हो ....
एक कोना मैं सजाऊं ...एक कोना तुम सजाओ...
एक हिस्सा मैं बसाऊं...एक हिस्सा तुम बसाओ ...
और सुनो, तुम्हारे जानिब, एक नया सूरज हो... मेरे जानिब एक पुराना चांद हो ....
कई बार मैं ये भी सोचती हूं कि तुम दबे पांव, उस घर में आना और साथ में थोड़ी उम्मीदों की आग भी ले आना
और मैं, दिलासों से चूल्हा फूंकूंगी.. फिर मिल कर वादों की कुछ छौंक लगाएंगें....
रात के खाने में जब होंठ जलेगा...तो प्यार के शीतल अहसास से एक दूसरे को ठंडक पहुंचाएंगे ..
और जब नींद की बिस्तर लग जाएगी..
तो एक हिस्से में,
जिसमें तुम्हारे जज़्बात की मिट्टी हो और मेरे अहसास का गारा हो ....
एक कोना मैं सजाऊं ...एक कोना तुम सजाओ...
एक हिस्सा मैं बसाऊं...एक हिस्सा तुम बसाओ ...
और सुनो, तुम्हारे जानिब, एक नया सूरज हो... मेरे जानिब एक पुराना चांद हो ....
कई बार मैं ये भी सोचती हूं कि तुम दबे पांव, उस घर में आना और साथ में थोड़ी उम्मीदों की आग भी ले आना
और मैं, दिलासों से चूल्हा फूंकूंगी.. फिर मिल कर वादों की कुछ छौंक लगाएंगें....
रात के खाने में जब होंठ जलेगा...तो प्यार के शीतल अहसास से एक दूसरे को ठंडक पहुंचाएंगे ..
और जब नींद की बिस्तर लग जाएगी..
तो एक हिस्से में,
मैं सो जाऊंगी ...एक हिस्से में तुम सो जाना ....
ज़रीन की कलम से
ज़रीन की कलम से
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