मोहब्बत अगर..सिर्फ जिस्मानी होती तो रूह को इतनी छटपटाहट ना होती..प्यार अगर..महज़ छूने से जताया जा सकता तो निगाहों को चेहरा पीने की तलब ना होती..बेशुमार इश्क से जब छाती फटने लगती है तो आंखों से दुआएं (compassion) बरसती हैं..और फिर 'वो' एक शख्स सारी कायनात से जुड़ने का जरिया बन जाता है.. +anshupriya prasad
मोहब्बत करने वाले रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरा करते हैं..क्योंकि किसी और को अपना हिस्सा बनाने के लिए खुद को मिटाना पड़ता है..तभी दूसरे के लिए जगह बनती है..अपना वजूद जितना मिटेगा, उतना ही प्यार बढ़ता चला जाएगा..ज़रूरी नहीं है कि जितनी प्रीत आप कर सकते हो, उतनी वापस भी मिल जाए..क्योंकि प्रेम तो केवल वही निभा सकते हैं जिन्हें दर्द के नूर में तप-तप कर संवरना आता है..प्रेमी अगर मिल जाएं तो 'राधा-कृष्ण'..और ना मिल पाएं तो 'मीरा-कृष्ण'..
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