दर्द की भी अपनी एक उम्र होती है..फिर चाहें हम उसे कितना भी जकड़ें..एक दिन दर्द हमें छोड़कर चला ही जाता है..क्योंकि हमारे अंदर जो जीने की चाह है वो किसी भी तरह के दुख-दर्द से छुटकारा पाने की लगातार जद्दोजहद करती रहती है..हमें भले ही इसका अहसास ना हो..लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है..ये जंग और भी घमासान होती जाती है..यही वजह है कि चोट, कितनी भी गहरी हो..दर्द, कितना भी प्यारा हो..एक दिन उसे टाटा-बाय-बाय कहना ही पड़ता है..इसलिए दर्द से कैसी यारियां.. +anshupriya prasad
अपने आप से बात करते समय, बेहद सावधानी बरतें..क्योंकि हमारा आगे आने वाला वक्त काफी हद तक, इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं..या फिर खुद से कैसी बातें करते हैं..हमारे साथ कोई भी बात, होती तो एक बार है, लेकिन हम लगातार उसी के बारे में सोचते रहते हैं..और मन ही मन, उन्ही पलों को, हर समय जीते रहते हैं जिनसे हमें चोट पहुंचती है..बार-बार ऐसी बातों को याद करने से, हमारा दिल इतना छलनी हो जाता है कि सारा आत्मविश्वास, रिस-रिस कर बह जाता है..फिर हमें कोई भी काम करने में डर लगता है..भरोसा ही नहीं होता कि हम कुछ, कर भी पाएंगे या नहीं..तरह-तरह की आशंकाएं सताने लगती हैं..इन सबका नतीजा ये होता है कि अगर कोई अनहोनी, नहीं भी होने वाली होती है, तो वो होने लगती है..गलत बातें सोच-सोच कर, हम अपने ही दुर्भाग्य पर मोहर लगा देते हैं..इसलिए वही सोचो, जो आप भविष्य में होते हुए देखना चाहते हो..वैसे भी न्यौता, सुख को दिया जाता है..दुख को नहीं..तो फिर तैयारी भी खुशियों की ही करनी चाहिए..
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